Dr Ambedkar ka kala sach -4 | गोलमेज सम्मेलन और पूना पैक्ट


Dr Ambedkar ka kala sach सीरीज के चौथे अंक में हम 1920 में दलितों द्वारा पृथक निर्वाचन के लिए पंजाब में चल रहे आंदोलन और उसमे अंबेडकर की भूमिका पर चर्चा करेंगे। इस अंक में हमे यह जानने को मिलेगा की Dr Bhimrao Ambedkar हजारों किलोमीटर दूर महाराष्ट्र से पंजाब में कैसे गए।

कम्युनल अवार्ड (communual award)

जैसा की हम सब जानते है की अंग्रेजी हुकूमत में फूट डालो और शासन करो की नीति पर काम चल रहा था ...धीरे धीरे  पूरे भारत पर काबिज हो चुकी अंग्रेजी हुकूमत ने अलग अलग वर्गो को खुश करने के लिए कम्युनल अवार्ड घोषित किए हुवे थे जिसमे ईसाई, मुस्लिम हिंदू और सिख को पृथक निर्वाचन के हुकूक (अधिकार) मिले हुवे थे। इतिहासिक पृष्ठभूमि के हिसाब से हिंदुओ में दलित वर्ग अभी भी कमजोर था। अपनी इस्तीथी को सुधारने के लिए दलितों ने मिलकर एक आंदोलन की नीव रखी और संयुक्त रूप से अपने आप को आद्धर्मी घोषित कर आंदोलनरत हो गए 1925 में अपनी बात को अंग्रेजी सरकार के समक्ष रखने के लिए उन्हें एक वकील की आवश्यकता थी। अंबेडकर के रूप में उन्हें एक दलित नेता और वकील दोनो मिल गए थे।आंदोलनकारियों की पैरवी के लिए अंबेडकर ने हामी भरी और 1925 में पंजाब आ गए। आंदोलन और अंबेडकर की पैरवी की बदौलत 1927 में अंग्रेजी सरकार ने जांच के लिए एक कमीशन बैठा दिया, जिसको हम "साइमन कमीशन" के नाम से जानते है दलितों की आश जगी की उनकी मेहनत रंग लाई लेकिन लाला लाजपत राय ने इसका विरोध किया जिसमे अंग्रेजी लाठीचार्ज में लाला को अपनी जान गवानी पड़ी।उनका मानना था की हिन्दूओ के अभिन्न अंग दलित हिंदुओ से कट जायेगा और हिंदू अल्पसंख्यक रह जायेगा।

गोलमेज सम्मेलन ( Roundtable Conference)

लाजपतराय की मृत्यु से आंदोलन की गति धीमी हुई और साइमन कमीशन भी लौट गया।

गोलमेज सम्मेलन , round table conference


प्रथम गोलमेज सम्मेलन (First Roundtable Conference)

अपने लोगो का बलिदान दे चुके दलितो ने हार नही मानी और आंदोलन जारी रखा। अंबेडकर भी अपनी भूमिका को बखूबी निभा रहे थे। इसके चलते  12 नवंबर 1930 को अंग्रेजी हुकूमत ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजन किया जिसमे दलितों को अलग प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करते हुवे Dr Ambedkar को वहां सम्मलित होने का मौका मिला। अंबेडकर ने दलितों से जुड़ी सभी समस्याएं विस्तार से कान्फ्रेस में उठाई और अंग्रेजी हुकूमत से सवाल पूछे की उन्होंने दलितों के लिए क्या कार्य किए। कांफ्रेंस बेनतीजा 20 जनवरी को समाप्त हुई और 13 फरवरी को अंबेडकर भारत वापस लौट आए।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (Second  Roundtable Conference)

प्रथम गोलमेज सम्मेलन के चलते और पंजाब के अछूतो द्वारा उनको आंदोलन का वकील बनने के चलते अब अंबेडकर बहुत पॉपुलर हो चुके थे। 7 सितंबर 1931 को लंदन में द्वितीय सम्मेलन का आयोजन हुआ , जहां अंबेडकर ने दलितों की धर्म (आद्धर्म) और जाति के आधार पर राजनैतिक हिस्सेदारी की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया जहां पृथक निर्वाचन देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई। इससे कांग्रेस में अंबेडकर के प्रति अलोकप्रियता बढ़ी ।

पूना पैक्ट ( Poona pact)

पंजाब के लाखो आदधर्मी आंदोलनकारियों और उनके वकील डॉ अंबेडकर की पैरवी के चलते अंग्रेजो ने प्रथक निर्वाचन की घोषणा कर दिया जिसमे दलितों को यह अधिकार था की वह डबल वोट से एक सामान्य वा एक दलित उम्मीदवार चुन सके। इन सब से नाराज मोहनदास कर्मचंद गांधी ने पुणे की यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया , अपने अधिकारों के हनन को देख दलितों में से स्वामी शुद्रानंद उर्फ अछूतानंद और आर्य समाजी पं बक्शीराम ने गांधी के खिलाफ अनशन शुरू कर दिया जो लगभग महीना चला। अनशन के चलते कांग्रेसी नेताओं पावलंकर बालू और मदनमोहन मालवीय ने अंबेडकर के साथ यरवदा जेल में बैठक की।

आदधर्मी आंदोलनकारी चिंतित हुवे और अपने अनशन को लगातार जारी रखे हुवे थे। लेकिन आरक्षण की भीख और मंदिर प्रवेश की मांग , गांधी की बिगड़ती हालत और कांग्रेस के दबाव के चलते  घुटने टेक दिए और पूना संधि के नाम से एक संधि कर ली। अब दूसरी तरफ आमरण अनशन पर बैठे दलित आंदोलनकारी ठगा हुआ  महसूस कर रहे थे उनकी 12 वर्षो के आंदोलन और बलिदान पर अंबेडकर और गांधी ने पानी फेर दिया था।

उसके बाद अंबेडकर के प्रति दलितों में भारी रोष था और अंबेडकर फिर कभी मुड़कर उनकी सुध लेने पंजाब नही गए।

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काले सच ( Black Truth)

  • अंबेडकर 1925 में दलितों के वकील के तोर पर पंजाब में आदधर्मी आंदोलनकारियों के साथ जुड़े।
  • अंबेडकर को आंदोलनकारियों ने किसी भी संधि के लिए अधिकृत नही किया था।
  • अंबेडकर ने गांधी के 3 दिन के अनशन के चलते दलितों के महीने भर के अनशन को दरनिकार किया।
  • अंबेडकर ने पूना पैक्ट को कभी अपनी गलती स्वीकार नहीं किया।

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